आज सोचा था कुछ अच्छा लिखूंगा किन्तु ऐसा आभास हो रहा है कि आज विचारों की हड़ताल है. मेरे खाली दिमाग रुपी मटके पे कोई विचार आज टंकार मारने को तैयार ही नहीं हो रहा है! सुबह से बैठा हूँ किन्तु बिना किसी नतीजे के.
शायद विचार भी आज रविवार मनाने कि इच्छा रखते हैं. जब हर कोई रविवार को आलस करता है तो विचार क्यों नहीं? कुछ सूझ नहीं पड़ रहा था तो सोचा थोडा साहित्यिक हिंदी कवितायों का अवलोकन कर लूं . अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा रचित एक कविता, "ऊँचाई" मुझे बहुत ही प्रिय है. उस कविता कि विशेषकर यह दो पंक्तियाँ बहुत ही भावपूर्ण हैं-
मेरे प्रभु!मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
गैरों को गले न लगा सकूँ,इतनी रुखाई कभी मत देना।
~आदि
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Kya baat hai .. badshaa.. tum to tej ho gaye ho...
ReplyDeleteToo Good Bro.. keep it up
Saurabh