Monday, May 3, 2010

कुछ पंक्तियाँ...

1.
जलो...
मगर दीप की तरह.
स्वयं जलकर भी दूर करे अन्धकार,
इतना होने पे भी न करे अहंकार,
बनो उस दीप की तरह.
जलो...
मगर दीप की तरह.

2.
जो कभी न आएगा, उस स्वर्णिम कल के पीछे भागता रहा
जो अभी हाथ में है, उस सुनहरे आज को गंवाता रहा ...

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